Anam

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सूरदास जी के पद



निसिदिन बरसत नैन हमारे
सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।।
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे
'सूरदास' अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥

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